संत और भगवंत कभी किसी के ऋणी नही रहते- मर्यादा पुरुषोत्तम राम... जानें खास रिपोर्ट में
संत और भगवंत कभी किसी के ऋणी नही रहते- राम जी।
ग्राम चमरखन्ना स्थित दक्षिणमुख हनुमान मंदिर में तीसरे दिन की कथा में पूज्य राम जी ने कर्दम महात्मा -माता देहुति, मनु-सतरूपा, यज्ञ-दक्षिणा के विवाह व जीवन चरित्र की कथा सुनाई । आचार्य राम जी ने महाराज दक्ष की कथा में भगवान शिव और माता सती के विवाह, दक्ष द्वारा शिव अपमान और दक्ष के यज्ञ में सती माता द्वारा अपना शरीर त्यागने की कथा का सजीव वर्णन किया। कथा के चतुर्थ स्कन्ध के समाप्ति के साथ पंचम स्कन्ध में महाराज प्रिय व्रत के चरित्र का सुन्दर वर्णन करते हुए प्रियव्रत का अर्थ बताते कहा कि प्रियव्रत का अर्थ जीवन में सुन्दर प्रतिज्ञा करने वाले जीवन चरित्र से है।
साथ ही महाराज भरत की कथा के माध्यम से मानव के मोहरूपी चरित्र का वर्णन किया जिसमें भरत द्वारा हिरनी के बच्चे के प्रति मोह होने से उन्हें हिरन के रूप में जन्म लेना पड़ा।
साथ ही भरत और राजा रहुगढ़ के मिलाप के साथ पंचम अध्याय का समापन किया। छठवे अध्याय में अजामिल उद्धार की कथा और वृत्तासुर का वध दधीचि की हड्डियों से वज्र का निर्माण , चित्रकेतु के पुत्र की हत्या की कथा के साथ चित्रकेतु के वैराग्य के साथ छठवे अध्याय का समापन किया। पूज्य राम जी ने कथा में संतो और भगवान की महिमा का सुन्दर वर्णन किया।आज कथा सुनने के लिए सुघर सिंह , राजाजनक सिंह, कासीराम, कुवंर सिंह , राघवेंद्र सिंह भवानी आदि सैकड़ो लोग उपस्थित रहे।
ग्राम चमरखन्ना स्थित दक्षिणमुख हनुमान मंदिर में तीसरे दिन की कथा में पूज्य राम जी ने कर्दम महात्मा -माता देहुति, मनु-सतरूपा, यज्ञ-दक्षिणा के विवाह व जीवन चरित्र की कथा सुनाई । आचार्य राम जी ने महाराज दक्ष की कथा में भगवान शिव और माता सती के विवाह, दक्ष द्वारा शिव अपमान और दक्ष के यज्ञ में सती माता द्वारा अपना शरीर त्यागने की कथा का सजीव वर्णन किया। कथा के चतुर्थ स्कन्ध के समाप्ति के साथ पंचम स्कन्ध में महाराज प्रिय व्रत के चरित्र का सुन्दर वर्णन करते हुए प्रियव्रत का अर्थ बताते कहा कि प्रियव्रत का अर्थ जीवन में सुन्दर प्रतिज्ञा करने वाले जीवन चरित्र से है।
साथ ही महाराज भरत की कथा के माध्यम से मानव के मोहरूपी चरित्र का वर्णन किया जिसमें भरत द्वारा हिरनी के बच्चे के प्रति मोह होने से उन्हें हिरन के रूप में जन्म लेना पड़ा।
साथ ही भरत और राजा रहुगढ़ के मिलाप के साथ पंचम अध्याय का समापन किया। छठवे अध्याय में अजामिल उद्धार की कथा और वृत्तासुर का वध दधीचि की हड्डियों से वज्र का निर्माण , चित्रकेतु के पुत्र की हत्या की कथा के साथ चित्रकेतु के वैराग्य के साथ छठवे अध्याय का समापन किया। पूज्य राम जी ने कथा में संतो और भगवान की महिमा का सुन्दर वर्णन किया।आज कथा सुनने के लिए सुघर सिंह , राजाजनक सिंह, कासीराम, कुवंर सिंह , राघवेंद्र सिंह भवानी आदि सैकड़ो लोग उपस्थित रहे।
Comments
Post a Comment